AI News World India

आस्था और उल्लास का अनूठा संगम: सुल्तानपुर में 251 किलो फूलों से सजे मंदिर में धूमधाम से मनाई गई दुर्गा अष्टमी

सुल्तानपुर (कोटा)। शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर सुल्तानपुर नगर में मंगलवार को दुर्गा अष्टमी का पर्व आस्था और उल्लास के अनूठे संगम के साथ मनाया गया। नगर की धड़कन कहलाने वाले श्री चामुंडा माता मंदिर में मां दुर्गा के स्वरूप मां महागौरी की भव्य पूजा-अर्चना की गई, जिसमें 251 किलो फूलों से सजे फूल बंगले और 51 किलो सब्जियों व फलों के भव्य श्रृंगार ने भक्तों के मन मोह लिए .

मंदिर परिसर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा और मां के जयकारों से वातावरण गूंज उठा। लाल चुनरी में सज्जित 51 थालों के साथ महिलाओं ने महाआरती की और ड्रोन द्वारा हवाई पुष्प वर्षा इस उत्सव के आकर्षण का विशेष केंद्र रही . हर वर्ष की भांति इस बार भी नगरवासियों ने मां चामुंडा के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा का प्रदर्शन किया।

दुर्गा अष्टमी का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में नवरात्रि की अष्टमी तिथि, जिसे दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, का विशेष महत्व है . यह वह दिन है जब मां दुर्गा ने असुरों के सेनापतियों चंड और मुंड का वध किया था . इसीलिए इस दिन को वीरा अष्टमी भी कहते हैं और देवी के शस्त्रों की पूजा (अस्त्र पूजा) की जाती है .

· मां महागौरी की उपासना: नवरात्रि के इस आठवें दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा का विधान है . मान्यता है कि इनकी आराधना से भक्तों के सारे पापों का नाश होता है, जीवन में सुख-समृद्धि आती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं . सुहागिन स्त्रियों को सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है .
· संधि पूजा: अष्टमी तिथि के अंत और नवमी तिथि के प्रारंभ के संधिकाल में संधि पूजा का विशेष महत्व है . इस बार यह पूजा 30 सितंबर को शाम 05:42 से 06:30 बजे तक संपन्न हुई . ऐसी मान्यता है कि इस दौरान की गई पूजा से अष्टमी की देवी महागौरी और नवमी की देवी सिद्धिदात्री दोनों प्रसन्न होती हैं .
· कन्या पूजन: अष्टमी के दिन कन्या पूजन की भी महत्वपूर्ण परंपरा है . इस दिन दो से नौ वर्ष की कन्याओं में मां दुर्गा का स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है, उन्हें भोग लगाया जाता है और उपहार दिए जाते हैं .

सुल्तानपुर में दुर्गा अष्टमी के इस भव्य आयोजन ने एक बार फिर साबित किया कि भारतीय संस्कृति में आस्था और उल्लास किस तरह एक-दूसरे में रच-बस गए हैं। मां के भक्ति रस में सराबोर यह त्योहार न केवल धार्मिक विश्वास, बल्कि सामुदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक विरासत की मजबूत डोर से सभी को बांधने का काम करता है।

‘जय माता दी’

ainewsworld
Author: ainewsworld

यह भी पढ़ें

टॉप स्टोरीज