भारत सरकार ने आयुर्वेद को एक बड़ा और स्थायी सम्मान देते हुए अब हर साल 23 सितंबर को ‘आयुर्वेद दिवस’ मनाने का ऐतिहासिक फैसला किया है।
इससे पहले, आयुर्वेद दिवस को धनतेरस (धन्वंतरि जयंती) के दिन मनाया जाता था, जिसकी तिथि हर साल बदलती रहती है। 23 सितंबर की एक निश्चित तिथि तय करने के पीछे सरकार का मकसद आयुर्वेद को एक सार्वभौमिक पहचान देना और दुनिया भर में इसके उत्सव को सुविधाजनक बनाना है।
इस महत्वपूर्ण फैसले की घोषणा करते हुए केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रतापराव जाधव ने कहा, “आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक समग्र विज्ञान है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य सिखाता है। 23 सितंबर को एक निश्चित तिथि घोषित करके, हमने आयुर्वेद को एक वैश्विक कैलेंडर पहचान प्रदान की है।”
2025 के आयुर्वेद दिवस की थीम ‘लोगों और ग्रह के लिए आयुर्वेद’ रखी गई है। यह थीम जलवायु परिवर्तन और बदलती जीवनशैली से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान में आयुर्वेद की भूमिका को रेखांकित करती है।
आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने इस अवसर पर बताया कि आयुर्वेद दिवस एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है जो भारत के प्राचीन ज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि आयुर्वेद देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है।
पिछले साल (2024) आयोजित 9वें आयुर्वेद दिवस पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA) के नए परिसर का उद्घाटन किया था और देश भर में ‘प्रकृति परीक्षण अभियान’ जैसे कई बड़े कार्यक्रमों की शुरुआत की थी।
अब, 2025 से, 23 सितंबर का दिन न केवल एक उत्सव का दिन होगा, बल्कि आयुर्वेद को आधुनिक दुनिया की स्वास्थ्य समस्याओं—जैसे कि तनाव, मधुमेह, और पर्यावरणजनित बीमारियों—के एक व्यावहारिक समाधान के रूप में स्थापित करने का एक अवसर भी होगा। यह कदम आयुर्वेद की विरासत को और मज़बूत करने वाला साबित होगा।

Author: ainewsworld



