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वंदे मातरम के 150 वर्ष: राष्ट्रीय गीत की ऐतिहासिक यात्रा को समर्पित होगा राष्ट्रव्यापी समारोह

 

भारत की आज़ादी की लड़ाई का वह ऐतिहासिक नारा, जिसने एक सदी पहले देशभक्तों के दिलों में जोश भरा, आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में राष्ट्रव्यापी समारोह आयोजित करने की मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस ऐतिहासिक गीत की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को मान्यता देते हुए विशेष रूप से युवाओं और छात्रों के बीच इसके महत्व को रेखांकित करने का निर्णय लिया गया है.

इस अवसर पर देश भर में ऐसी पहलें चलाई जाएंगी, जिनका उद्देश्य अगली पीढ़ी के दिलों में राष्ट्रीय गीत की उस मूल, क्रांतिकारी भावना को जीवित करना है, जिसने एक समय में अंग्रेजी शासन की नींद उड़ा दी थी.

📜 वंदे मातरम: एक ऐतिहासिक संक्षिप्त तथ्य-पत्रक

वंदे मातरम के 150 गौरवशाली वर्षों के इतिहास की मुख्य बातें निम्न तालिका में देखी जा सकती हैं:

पहलू विवरण

रचनाकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (बंकिम चंद्र चटर्जी)
रचना तिथि 7 नवंबर, 1876
मूल स्रोत बांग्ला उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882)
भाषा संस्कृत और बांग्ला का मिश्रण
राष्ट्रीय गीत का दर्जा 24 जनवरी, 1950
प्रथम सार्वजनिक गायन 1896 में कलकत्ता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा
अर्थ “माता, मैं तुझे वंदन करता हूं” (I praise thee, Mother)

🗓️ राष्ट्रीय गीत की ऐतिहासिक यात्रा

वंदे मातरम की रचना का इतिहास बेहद दिलचस्प है। 1870-80 के दशक में जब ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड सेव द क्वीन’ गाना अनिवार्य कर दिया था, तो इसी के जवाब के तौर पर बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1876 में एक नए गीत की रचना की. बाद में 1882 में जब उन्होंने ‘आनंदमठ’ उपन्यास लिखा, तो इस गीत को उसमें शामिल कर लिया.

यह गीत जल्दी ही देश की आज़ादी की लड़ाई का प्रतीक बन गया। 1905 में बंग-भंग आंदोलन के दौरान यह एक जन-जन का नारा बना. इसकी लोकप्रियता और क्रांतिकारी प्रभाव से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने इसे गाने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसके बाद इसे गाना या बोलना ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी का प्रतीक बन गया.

🎵 गीत का महत्व और सांस्कृतिक प्रभाव

वंदे मातरम को भारत की संविधान सभा द्वारा 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि इसका सम्मान राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ के बराबर होना चाहिए.

इस गीत की विशेषता इसके प्रथम दो पदों में है, जो पूर्णतः संस्कृत में हैं और जिनमें मातृभूमि की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन है – “सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्” (अर्थ: जल से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शांत, कटाई की फसलों के साथ गहरी हरी-भरी माता). यह खंड सार्वभौमिक और सर्वसमावेशक है, जिस कारण इसे ही राष्ट्रीय गीत के रूप में औपचारिक मान्यता मिली.

150वीं वर्षगांठ समारोह का उद्देश्य

सरकार द्वारा 150वीं वर्षगांठ मनाए जाने के निर्णय का मुख्य उद्देश्य युवा पीढ़ी को इस गीत के मूल क्रांतिकारी भाव और ऐतिहासिक महत्व से जोड़ना है. यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की सामूहिक चेतना का प्रतीक है, जिसने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एकजुट होने का मंत्र दिया था.

देश भर में फैलाए जाने वाले इन देशव्यापी उत्सवों का लक्ष्य है कि वंदे मातरम की विरासत पूरी तरह से मनाई जाए और अगली पीढ़ी के दिलों में बसी रहे.

वंदे मातरम आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 150 साल पहले था। यह हमें हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गौरवशाली इतिहास और असंख्य वीरों के बलिदान की याद दिलाता है। राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ न केवल एक ऐतिहासिक उपलब्धि का जश्न है, बल्कि भारतीयता और राष्ट्रप्रेम की उस अमर भावना को फिर से जागृत करने का अवसर है, जिसने एक राष्ट्र को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की शक्ति दी।

यह उत्सव हर भारतीय से यह वादा नवीनीकृत करने का आह्वान है कि हम मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम और दायित्व को सदैव स्मरण रखेंगे – “वंदे मातरम्!”

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Author: ainewsworld

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