जैव प्रौद्योगिकी नवाचार एवं अनुसन्धान परिषद – ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इन्वोवेशन काउंसिल-बीआरआईसी – ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट- टीएचएसटीआई) फरीदाबाद और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान गर्भवती महिला में भ्रूण की आयु को सटीक रूप से निर्धारित करने के लिए एक भारत-के लिए उपयुक्त विशिष्ट मॉडल विकसित किया है। वर्तमान में, भ्रूण की आयु [गर्भकालीन आयु (गैस्टेशनल एज- जीए)] पश्चिमी देशों की जनसंख्या के लिए विकसित एक सूत्र (फार्मूले) का उपयोग करके निर्धारित की जाती है और इसके भारतीय जनसंख्या में भ्रूण की वृद्धि में भिन्नता के कारण गर्भावस्था के बाद के भाग में लागू होने पर गलत होने की संभावना होती है। नव विकसित दूसरी और तीसरी तिमाही का जीए फॉर्मूला, गर्भिणी-जीए 2, भारतीय जनसंख्या के लिए भ्रूण की आयु का सटीक अनुमान लगाता है, जिससे त्रुटि लगभग तीन गुना कम हो जाती है। गर्भवती महिलाओं की उचित देखभाल और सटीक प्रसव तिथि निर्धारित करने के लिए सटीक जीए आवश्यक है।
जैव प्रौद्योगिकी नवाचार एवं अनुसन्धान परिषद – ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इन्वोवेशन काउंसिल-बीआरआईसी – ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट टीएचएसटीआई) फरीदाबाद और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने जन्म परिणामों पर उन्नत अनुसंधान के लिए अंतःविषय समूह के एक हिस्से के रूप में – जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत पहल (डीबीटी इंडिया इनिशिएटिव गर्भ-इनी (जीएआरबीएच- आईएनआई) कार्यक्रम ने दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान गर्भवती महिलाओं में ग्राभ्कालीन आयु (जीए) का आकलन करने के लिए एक मॉडल विकसित किया है। गर्भिणी-जीए2 पहला ऐसा अंतिम -तिमाही जीए अनुमान मॉडल है जिसे भारतीय जनसंख्या डेटा का उपयोग करके विकसित और शुरू में मान्य किया गया है। गर्भिणी –जीए 2 जो नियमित रूप से मापे जाने वाले तीन भ्रूण अल्ट्रासाउंड मापदंडों का उपयोग करता है, को हरियाणा के गुरुग्राम सिविल अस्पताल में प्रलेखित जीएआरबीएच- आईएनआई समूह डेटा का उपयोग करके विकसित किया गया था, और शुरुआत में इसे दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र समूह में मान्य (वैलिडेट) किया गया था।
13 फरवरी, 2024 को लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया में प्रकाशित परिणामों में, शोधकर्ताओं ने गर्भिणी-जीए 2 मॉडल विकसित करने के लिए आनुवंशिक एल्गोरिदम-आधारित तरीकों का प्रयोग किया, जिसे गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे तिमाही में लागू करने पर, वर्तमान में उपयोग की जाने वाली तुलना में अधिक सटीक था। उदाहरण के लिए, हैडलॉक की तुलना में गर्भिणी –जीए 2 मॉडल, जीए अनुमान माध्य त्रुटि (एस्टीमेशन मीडियन एरर) को तीन गुना से अधिक कम कर देता है।
अल्ट्रासाउंड डेटिंग प्रारंभिक गर्भावस्था में जीए का निर्धारण करने के लिए देखभाल का मानक है। यद्यपि भारत में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही में अपना पहला अल्ट्रासाउंड कराता है। बेहतर सटीकता के साथ इन महिलाओं में भारतीय जनसंख्या -विशिष्ट जीए फ़ॉर्मूले का अनुप्रयोग संभावित रूप से गर्भावस्था देखभाल में सुधार कर सकता है और जिससे बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यह सटीक डेटिंग देश में गर्भावस्था के परिणामों के लिए महामारी विज्ञान के अनुमानों की सटीकता को भी बढ़ाएगी। एक बार संभावित अखिल भारतीय समूहों में मान्य (वैलिडेट) होने के बाद, इस गर्भिणी –जीए 2 को पूरे भारत के क्लीनिकों में लागू किया जा सकता है I जिससे प्रसूति विशेषज्ञों (आब्स्टिट्रिशियन्स) और नवजात शिशु विशेषज्ञों (नियोनेटोलोजिस्ट्स) द्वारा दी जाने वाली देखभाल में सुधार होगा तथा परिणामस्वरूप भारत में मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी।
यह अध्ययन गुरुग्राम सिविल अस्पताल, गुरुग्राम, सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर और पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, पुडुचेरी के साथ साझेदारी में आयोजित किया गया था। जीएआरबीएच- आईएनआई कार्यक्रम भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा समर्थित एक प्रमुख कार्यक्रम है। डेटा विज्ञान अनुसंधान को जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), डीबीटी, भारत सरकार के ग्रैंड चैलेंजेज इंडिया कार्यक्रम द्वारा वित्त पोषित किया गया था। अतिरिक्त वित्तपोषण (फंडिंग) रॉबर्ट बॉश सेंटर फॉर डेटा साइंस एंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (आरबीसीडीएसएआई) और सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोलॉजी एंड सिस्टम्स मेडिसिन (आईबीएसई), आईआईटी मद्रास से मिला है ।
इस अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, गर्भ -इनी. (जीएआरबीएच- आईएनआई.) कार्यक्रम के प्रमुख अन्वेषक और टीएचएसटीआई के प्रतिष्ठित प्रोफेसर डॉ. शिंजिनी भटनागर ने कहा कि “गर्भकालीन आयु (जीए) सटीकता में सुधार करना गर्भिणी अध्ययन के व्यापक लक्ष्यों का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसका उद्देश्य गर्भावस्था के प्रतिकूल परिणामों को कम करना है । किसी विशिष्ट नैदानिक आवश्यकता का समाधान किए बिना परिष्कृत डेटा विज्ञान उपकरणों का मात्र अनुप्रयोग पर्याप्त नहीं है। यह सुनिश्चित करने का सार यह है कि ऐसी तकनीकी प्रगति से नैदानिक क्षेत्र में ठोस लाभ का मिलना चिकित्सकों और डेटा वैज्ञानिकों के बीच शुरू-से –अंत तक (एंड-टू- एंड) की साझेदारी में निहित है। इस तरह का सहयोग यह सुनिश्चित करता है कि समाधानों का विकास न केवल तकनीकी रूप से सुदृढ़ है बल्कि चिकित्सकीय रूप से भी प्रासंगिक है और स्वास्थ्य देखभाल वर्कफ़्लो में निर्बाध रूप से एकीकृत है। यह अध्ययन इस दृष्टिकोण का ही एक उदाहरण है।”
डॉ. हिमांशु सिन्हा, भूपत और ज्योति मेहता स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज, बायोटेक्नोलॉजी विभाग, आईआईटी मद्रास, जिन्होंने डेटा साइंस कार्य का नेतृत्व किया, ने कहा कि “आईआईटी मद्रास भारत में जन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जमीनी स्तर और स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल समस्याओं को हkहेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (टीएचएसटीआई) के साथ काम करते हुए, प्रतिकूल जन्म परिणामों का पूर्वानुमान लगाने के उद्देश्य से उपकरण बनाने के लिए उन्नत डेटा विज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता/ मशीन लर्निंग (एआई/एमएल) तकनीकों का उपयोग करते हैं। इस दिशा में पहला कदम सटीक जीए मॉडल विकसित करना है जो पश्चिमी देशों की जनसंख्या का उपयोग करके डिजाइन किए गए वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले मॉडल की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने कहा कि “गर्भ-आईएनआई डीबीटी का एक प्रमुख कार्यक्रम है तथा गर्भकालीन आयु का अनुमान लगाने के लिए इन जनसंख्या-विशिष्ट मॉडलों का विकास एक सराहनीय परिणाम है। इन मॉडलों को अब पूरे देश में मान्य (वैलिडेट) किया जा रहा है।