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बिहार राजनीति में बड़ा मोड़: लालू प्रसाद यादव बने आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, 13वीं बार संभाली कमान

बिहार राजनीति में बड़ा मोड़: लालू प्रसाद यादव बने आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, 13वीं बार संभाली कमान

पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर एक परिचित चेहरा सबसे ऊपर नजर आएगा। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के संस्थापक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर पार्टी की कमान संभाल ली है। उन्होंने लगातार 13वीं बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि वही इस पद पर बने रहेंगे। यह फैसला उस समय आया है जब पार्टी के भीतर इस पद को लेकर काफी चर्चा और अनुमान लगाए जा रहे थे।

क्या थे अनुमान? कौन थे दावेदार?

पिछले कुछ समय से आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर कई नाम चर्चा में थे। पार्टी के युवा नेता और लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव जो वर्तमान में विपक्ष के नेता हैं, को एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था। इसके अलावा, पार्टी की वरिष्ठ नेता और लालू यादव की बेटी मीसा भारती का नाम भी इस दौड़ में शामिल था। वहीं, पार्टी के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा को भी कुछ हलकों में एक संभावित उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था। इन सभी नामों के बीच यह सवाल उठ रहा था कि क्या पार्टी नेतृत्व में परिवर्तन की ओर बढ़ रही है।

“परिवारवाद” पर पुनर्विचार? या फिर स्थिरता का संदेश?

क्षेत्रीय दलों के इतिहास पर नजर डालें तो अक्सर नेतृत्व परिवार के भीतर ही बना रहता है। आरजेडी के संदर्भ में भी यही अपेक्षा थी – अगर लालू यादव स्वयं नहीं तो शायद तेजस्वी यादव या कोई अन्य परिवार सदस्य ही यह पद संभालते। हालाँकि, लालू यादव ने सभी अनुमानों और “किंतु-परंतु” को दरकिनार करते हुए सीधे तौर पर खुद ही नामांकन दाखिल कर दिया। इस फैसले ने पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग को राहत दी है, जो पार्टी की एकजुटता और लालू यादव के अनुभवी नेतृत्व को महत्वपूर्ण मानते हैं।

सवाल गूंज रहे: क्यों बरकरार रखा पद?

लालू यादव के इस फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है: क्यों? क्या यह पार्टी के भीतर चल रही कथित गुटबाजीऔर संभावित टकराव को रोकने का एक कूटनीतिक कदम है? क्या तेजस्वी यादव सहित अन्य संभावित दावेदारों के बीच सहमति नहीं बन पाई? या फिर लालू यादव मानते हैं कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य, विशेषकर बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए, उनका सीधा नेतृत्व ही पार्टी के लिए सबसे फायदेमंद है? क्या यह तेजस्वी यादव जैसे युवा नेताओं को और अनुभव हासिल करने का समय देने की रणनीति है? पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि इस फैसले के पीछे पार्टी को एकजुट रखने और सभी धड़ों को साथ लेकर चलने की मजबूत इच्छाशक्ति काम कर रही है।

विशेषज्ञों की नजर में:

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला कई संकेत देता है:
1. अनुभव पर भरोसा: चुनौतीपूर्ण समय में पार्टी ने अनुभवी नेतृत्व को प्राथमिकता दी।
2. एकता बनाए रखना:पार्टी में मौजूद विभिन्न समूहों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश।
3. तेजस्वी का विकास जारी:तेजस्वी यादव को विपक्ष के नेता और प्रमुख चेहरे के रूप में काम करने का और अवसर मिलेगा, बिना पूरी जिम्मेदारी के दबाव के।
4. चुनावी रणनीति: आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक स्थिर और पहचाना हुआ नेतृत्व प्रस्तुत करना।

आगे की राह:

लालू प्रसाद यादव के 13वीं बार अध्यक्ष बनने से पार्टी में नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता का दौर समाप्त हो गया है। अब सभी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि वे पार्टी को किस दिशा में ले जाते हैं। क्या वे आरजेडी को बिहार में फिर से सत्ता की सीढ़ियों पर ले जा पाएंगे? क्या पार्टी के भीतर के विभिन्न विचारधाराओं को साध पाएंगे? और सबसे बढ़कर, यह निर्णय पार्टी की पारिवारिक छवि को कैसे प्रभावित करेगा? इन सभी सवालों के जवाब आने वाले समय में मिलेंगे। फिलहाल, बिहार की राजनीति में लालू यादव एक बार फिर केंद्र में हैं और आरजेडी उनके नेतृत्व में ही अगले चुनावी मुकाबले की तैयारी करेगी।

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Author: ainewsworld

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