मॉरीशस विश्वविद्यालय ने राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु को डॉक्टर ऑफ सिविल लॉ की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि मॉरीशस विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालय सिर्फ आकांक्षी युवाओं के सपनों की सीढ़ी नहीं हैं; वे ऐसे स्थल हैं जहां मानव जाति के भविष्य का निर्माण किया जाता है। उन्होंने कहा कि वह इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ सिविल लॉ की मानद उपाधि प्राप्त करके विशेष रूप से सम्मानित हुई हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सभी युवाओं, विशेषकर युवा महिलाओं को अपने अविरल जुनून की खोज करने और अपने सपनों को फलीभूत करने के लिए प्रेरित करेगा।
राष्ट्रपति मुर्मु ने शिक्षा की शक्ति के परिवर्तनकारी प्रभाव के अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा ही है जो हमें असुरक्षा और अभाव से अवसरों और आशा की ओर ले जाती है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने भारत को आने वाले कल की ‘ज्ञान अर्थव्यवस्था’ में ले जाने के लिए युवाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने को प्राथमिकता दी है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत की दूरदर्शी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करके नवाचार का एक पावर हाउस बन जाएगी जो मानवता के कल्याण में वृद्धि करती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत भविष्य की इस प्रगतिशील रोमांचक यात्रा में मॉरीशस जैसे अपने विशेष मित्रों के साथ साझेदारी करने को उत्सुक है। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि प्रत्येक वर्ष 400 मॉरीशसवासियों को भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (आईटीईसी) कार्यक्रम के अंतर्गत भारत में प्रशिक्षित किया जाता है और मॉरीशस के लगभग 60 छात्रों को भारत में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्रवृत्ति मिलती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत, मॉरीशस को एक समुद्री क्षेत्र पड़ोसी देश, हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रिय भागीदार और अपने अफ्रीका आउटरिच में एक प्रमुख प्लेयर के रूप में देखता है।
यह देखा गया कि भारत और मॉरीशसवासियों के बीच संबंध दो देशों की विशेष मित्रता का आधार रहे हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि मॉरीशस और भारत के युवा इस विशेष साझेदारी को गहन रूप से निभाएंगे।